क्या तारीफ़ करूं चांद की🌛🌛

क्या तारीफ़ करूं चांद की…..
कभी ईद का चांद, कभी करवा चौथ का चांद
है यह बच्चों का चंदा मामा
क्या तारीफ़ करु चांद की…..
कभी रोहनी प्रीतम, कभी गजानंद का उपहास करे
है यह शिव शीश का ताज
क्या तारीफ करूं चांद की….
कभी सुनामी लहरें, कभी ज्वार भाटा लाए समुंदर में
हैं धरा पर ग्रहण का कारण
क्या तारीफ करूं चांद की…..
कभी सुहागिनों का प्रेमी कभी हुसन का तुल्य बने
है यह सच्चा तन्हाई का साथी
क्या तारीफ करूं चांद की….
कभी लोरी बनें बच्चों की, कभी गीतकार के गीत
है शायरी बिन इसके अधूरी
क्या तारीफ करूं चांद की….
कभी भाद्र चतुर्थी का कलंक, कभी शरद पूर्णिमा का रोगनाशक है धरा का एकलौता उपग्रह
क्या तारीफ करूं चांद की…….
कभी दे शीतलता , कभी बने हमदर्द मेरा
है तू वही जो आया डोली में साथ मेरे
क्या तारीफ करूं चांद की….
कभी देखूं मां का रूप, कभी सच्चा दोस्त
है तू साक्षी मेरे दुःख सुख का
क्या तारीफ करूं चांद की…..