
क्या है तू, समझ ना आई अब तक
एक अबला नारी या अटूटऔरत
खुश है तू अपनी जिंदगानी से
फिर क्यों आंसू बहाती है एकांत में बैठकर
खुश है तू अपनों का साथ पाकर
फिर क्यों दिल भर आता है एकांत में बैठकर
खुश है तू पढ़ी लिखी बहू बनकर
फिर क्यों कहलाती है नासमझ,गंवार
खुश है तू हर रिश्ते में ढल जाना
फिर क्यों कहलाती है पराये घर की
आयी समझ बस इतनी सी
है तू स्वर्ण पिंजरे के पंछी की तरह
पास है तेरे प्रत्येक सुख समृद्धि
पर आजादी नहीं उड़ान भरने की
✍️Kirtisofatbharti